महाराष्ट्र में एक संत है कुर्मदास महाराज। वो महाराज के जन्म से ही हाथ और पैर नहीं थे। दयालु लोगो के भरण पोषण पे आश्रित थे। दयालु लोग अन्न की व्यवस्था कर देते थे। एक बार उनको सतसंग की ध्वनि सुनाई दी। तो पेट के बल रेंगते हुऐ सतसंग की जगह पर पहुंचे। और वहा उन्हों ने भगवान की महिमा सुनी। आंखों से प्रेम के आसू बहे भगवान की महिमा सुनते सुनते। सतसंग सुनने से भक्ति बढ गई। एक बार चतुर्मास आने पर पंढरपुर जाने का निश्चय किया। की पंढरपुर जावू और भगवान विठ्ठल के दर्शन कर के आवु। अब हाथ नहीं पैर नहीं यात्रा केसे हो? तो अपने सीने पर और पेट पर कुछ कवर बांध दिया जिससे शरीर की चमड़ी को घाटा ना पहुंचे और रेंगते हुए पंढरपुर जा रहे हे।
लोग बोल रहे हे ऐसे केसे आप पहुंचेंगे? वो बोले कोई बात नहीं। पद यात्री उनकी और देखते उनको दया आती। किसी ने कहा हम आपको उठा के ले चले। वो बोले नहीं नहीं में अपने ढंग से जाना चाहता हु तभी तो मेरी यात्रा होगी। कभी कभी थक जाते तो रुक जाते और भगवान से प्रार्थना करते एकादशी तक में आपके द्वार पहुंच जावु ऐसी कृपा करना। यात्री चलते जा रहे है और कुर्मदास महाराज अपने ढंग से जा रहे है। जैसे तैसे कर के पंढरपुर सात कोस दूर रह गया है। परंतु परसो एकादशी है। आप सोचो 7 कोस केसे काटते? परसो एकादशी। अब तो उनको लगा सायद नहीं पहुंच पाऊंगा। वो रोने लगे तो एक पद यात्री ने महाराज को पूछा क्यों रो रहे हो? वो बोले परसो एकादशी है में पहुंच नहीं पाऊंगा मुझे दर्शन करने है। महाराज बोले में तुम्हें चिठ्ठी लिख के देता हु। वो बोले आप केसे चिठ्ठी लिखोगे हाथ तो नहीं है? महाराज बोले आप कहीं से कागज और कलम ला के दो। तो उन्हों ने कागज और कलम ला के दी। महाराज ने कागज नीचे रखा और मुंह में कलम पकड़ी और कागज पर लिख रहे है प्रभु में तो आपके वहा नहीं आ सकुगा एकादशी तक फिर भी मेरा एकादशी का प्रणाम स्वीकार करना ऐसा लिखा और यात्री को वो चिठ्ठी दे दी और बोले ये चिठ्ठी वहा भगवान के चरणो में रख देना। कुर्मदास महाराज थक गए थे तो वही बैठ कर भगवान का नाम ले रहे थे। वो यात्री चिठ्ठी ले के वहा पहुंचे परंतु ईश्वर के पास हमारी चिठ्ठी ले के कोई पहुंचेगा तभी हमारी पुकार उन तक पहुंचेगी इस बात में कोई दम नहीं है। वो तो जब उनको दिल से पुकार ते है उसी क्षण उन तक पुकार पहुंच जाती है। यात्री ने महाराज की चिठ्ठी प्रभु के चरणो में चढ़ा दी। और वहा कुर्मदास महाराज के आगे भगवान विठ्ठल प्रगट हो गए। ऐसी थीं कुर्मदास महाराज की भक्ति।
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